रविवार, अप्रैल 14, 2019

इन दिनों


नंगी प्रजातियों की नंगी जबान
थूककर गुटक रहें अपने बयान-

फेंक रहे लपेटकर मुफ्त आश्वासन
मनभावन मुद्दों की खुली है दुकान----

देश को लूटने की हो रही साजिश
बैठे गये हैं बंदर बनाकर मचान--

उधेड़ दो चेहरों से मखमली खाल
चितकबरे चेहरे बने न महान--

पी गये चचोरकर सारी व्यवस्थायें
सूख गए खेत खलियान और बगान--

"ज्योति खरे"

बुधवार, अप्रैल 10, 2019

ठूंठ पेड़ से क्या मांगे

बरगद जैसे फैले
बरसों जीते
चन्दन रहते
और विष पीते --

मौसम गहनों जैसा
करता मक्कारी
पूरे जंगल की बनी
परसी तरकारी
नंगे मन का भेष धरें
जीवन जीते----

उपहार मिला गुच्छा
चमकीले कांटों का
वार नहीं सहता मन
फूलों के चांटों का
हरियाली को चरते
शहरी चीते----

ठूंठ पेड़ से क्या मांगे
दे दो मुझको छाँव
दिनभर घूमें प्यासे
कहाँ चलाये नांव
नर्मदा के तट पर
धतूरा पीते-----

"ज्योति खरे"

सोमवार, अप्रैल 01, 2019

मूर्ख दिवस पर -- समझदारी की बातें

चिल्लाकर मुहं खोल बे
खुल्म खुल्ला बोल बे

नेताओं की तोंद देखकर
पचका पेट टटोल बे

सुरा सुंदरी और सत्ता का
स्वाद चखो बकलोल बे

सत्ता नाच रही सड़कों पर
चमचे बजा रहे ढोल बे

बहुमत का फिर हंगामा 
बता दे अपना मोल बे

भिखमंगे जब बहुमत मांगें 
खोल दे इनकी पोल बे

तेरे बूते राजा और रानी
दिखा दे अपना रोल बे

बेशकीमती लोकतंत्र को
फोकट में मत तॊल बे

"ज्योति खरे"