शनिवार, दिसंबर 29, 2018

आसमानी ऊनी शाल

सम्हाल कर रखा है
तुम्हारे वादों का
दिया हुआ
ब्राउन रंग का मफलर
बांध लेता हूँ
जब कभी
कान में फुसफुसाकर
कहती है ठंड
कि, आज बहुत ठंड है

इन दिनों
गिर रही है बर्फ
दौड़ रही है शीत लहर
जानता हूँ
तुम्हारी तासीर
बहुत गरम है
पर
मेरी ठंडी यादों को
गर्माहट देना
ओढ़ लेना
मेरा दिया हुआ
ऊनी आसमानी शाल

पारा पिघलकर
बहने लगेगा......

"ज्योति खरे"

शुक्रवार, दिसंबर 21, 2018

घाट पर धुलने गयी है व्यवस्था

समर्थक परजीवी हो रहें हैं
सड़क पर कोलाहल बो रहें हैं

शिकायतें द्वार पर टंगी हैं
अफसर सलीके से रो रहें हैं

जश्न में डूबा समय मौन है
जनमत की थैलियां खो रहें हैं

चौखटों के पांव पड़ते थक गऐ
भदरंगे बेहरूपिये सो रहें हैं

घाट पर धुलने गई है व्यवस्था
आँख से बलात्कार हो रहें हैं----

"ज्योति खरे"

गुरुवार, दिसंबर 13, 2018

धूप में

धूप में
कुछ देर
मेरे पास भी बैठ लो
पहले जैसे

जब खनकती चूड़ियों में
समाया रहता था इंद्रधनुष
मौन हो जाती थी पायल
और तुम
अपनी हथेली में
मेरी हथेली को रख
बोने लगती थी
प्रेम के बीज

धूप में
अब जब भी बैठती हो मेरे पास
छीलती हो मटर
तोड़ती हो मैथी की भाजी
या किसती हो गाजर

मौजूदा जीवन में
खुरदुरा हो गया है
तुम्हारा प्रेम
और मेरे प्रेम में लग गयी है
फफूंद

सुनो
अपनी अपनी स्मृतियों को
बांह में भरकर
रजाई ओढ़कर सोते हैं
शायद
बोया हुआ प्रेम का बीज
सुबह अंकुरित मिले -----

"ज्योति खरे"