गुरुवार, दिसंबर 13, 2018

धूप में

धूप में
कुछ देर
मेरे पास भी बैठ लो
पहले जैसे

जब खनकती चूड़ियों में
समाया रहता था इंद्रधनुष
मौन हो जाती थी पायल
और तुम
अपनी हथेली में
मेरी हथेली को रख
बोने लगती थी
प्रेम के बीज

धूप में
अब जब भी बैठती हो मेरे पास
छीलती हो मटर
तोड़ती हो मैथी की भाजी
या किसती हो गाजर

मौजूदा जीवन में
खुरदुरा हो गया है
तुम्हारा प्रेम
और मेरे प्रेम में लग गयी है
फफूंद

सुनो
अपनी अपनी स्मृतियों को
बांह में भरकर
रजाई ओढ़कर सोते हैं
शायद
बोया हुआ प्रेम का बीज
सुबह अंकुरित मिले -----

"ज्योति खरे"

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