स्त्रियां जानती हैं
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स्त्री को
बचा पाने की
जुगत में जुटे
पुरुषों की बहस
स्त्री की देह से प्रारंभ होकर
स्त्री की देह में ही
हो जाती है समाप्त ---
स्त्रियां
पुरषों को बचा पाने की जुगत के बावजूद भी
सजती, संवरती हैं
रखती हैं घर को व्यवस्थित
स्त्रियां जानती हैं
पुरुषों के ह्रदय
स्त्रियों की धड़कनों से
धड़कते हैं ---
पुरुषों की आँखें
नहीं देख पाती
स्त्री की देह में एक स्त्री
स्त्रियों की आँखें
देखती हैं
समूची श्रृष्टि -----
"ज्योति खरे"
5 टिप्पणियां:
वाह ... उम्दा
हमेशा की तरह लाजवाब
बेहद सराहनीय सृजन सर।
बेहतरीन और लाजवाब सृजन ।
लाजवाब सृजन आदरणीय।
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