शुक्रवार, अक्तूबर 04, 2019

स्त्रियां जानती हैं

स्त्रियां जानती हैं
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स्त्री को
बचा पाने की
जुगत में जुटे
पुरुषों की बहस
स्त्री की देह से प्रारंभ होकर
स्त्री की देह में ही
हो जाती है समाप्त ---

स्त्रियां
पुरषों को बचा पाने की जुगत के बावजूद भी
सजती, संवरती हैं
रखती हैं घर को व्यवस्थित

स्त्रियां जानती हैं
पुरुषों के ह्रदय
स्त्रियों की धड़कनों से
धड़कते हैं ---

पुरुषों की आँखें
नहीं देख पाती
स्त्री की देह में एक स्त्री
स्त्रियों की आँखें 
देखती हैं
समूची श्रृष्टि -----

"ज्योति खरे"

5 टिप्‍पणियां:

Rohitas Ghorela ने कहा…

वाह ... उम्दा

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

हमेशा की तरह लाजवाब

Sweta sinha ने कहा…

बेहद सराहनीय सृजन सर।

Meena Bhardwaj ने कहा…

बेहतरीन और लाजवाब सृजन ।

मन की वीणा ने कहा…

लाजवाब सृजन आदरणीय।