फूल वाली--
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सींचकर आंख की नमी से
रखती है तरोताजा
अपने रंगीन फूल
संवारती है
टूटे आईने में देखकर
कई कई आंखों से
खरोंचा गया चेहरा
जानती है
सुंदर फूल
खिले ही अच्छे लगते हैं
मंदिर की सीढियां
उतरते चढ़ते हांफते
निवेदन करती है
बाबू जी, भैया जी, बहन जी, दीदी
सुंदर फूल ले लो
जब कोई खरीदता है फूल
चेहरे पर मासूम मुस्कान लाकर
मनोकामनाओं की फूंक मारते
प्रेम के पत्तों में लपेटकर
बेच देती है
अपने फूल
भरती है राहत की सांस
चढ़ा देती है
देवी के चरणों में
बचा हुआ आखिरी फूल
कि, शायद कोई देवता
चुन ले
कांटों में खिले इस फूल को
खींच दे हाथ में
सुगंधित प्यार की लकीर
मुरझाये फूल में
जान लौट आयेगी-------
"ज्योति खरे"
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-10-2019) को "झूठ रहा है हार?" (चर्चा अंक- 3482) पर भी होगी। --
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्री रामनवमी और विजयादशमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहद भावपूर्ण सृजन ।
वाह
मन को द्रवित करता बहुत सुंदर सृजन।
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