शनिवार, अप्रैल 13, 2024

मुद्दे

मुद्दे
***
खास समय में
कुछ लोग आकर
मुद्दों को सहलाते हैं
भावनाओं को
भटकाकर
चले जाते हैं

ऐसे लोग
रखते हैं गहरी पैठ
बदल देते हैं मस्तिष्क की तस्वीर
कर देते हैं कल्पनाओं की सूखी जमीन को हरा

मुद्दे
जीवन और मृत्यु के बीच
पलने वाले अद्र्श्य भ्रूण हैं 
जिन्हें मार दिया जाता है
रंगीन चादरों की तहों में लपेटकर

फिर नहीं आते ऐसे लोग
सो जाते हैं
मुद्दों की खाल ओढ़कर

भटकाने वालों से
सावधान हो जाओ
कंक्रीट की सड़कों पर
पगडंडियां मत बनाओ
बनाओ
एक बहुत चौड़ा रास्ता
जो मुद्दों के खतरनाक जंगल को
चीरता हुआ निकल जाए
उस पार
जहां स्वागत के लिए खड़ी है
आने वाली पीढ़ी
मुद्दों से बेखबर----     

◆ज्योति खरे

चित्र- गूगल से साभार

शनिवार, मार्च 02, 2024

प्रेम रेखाओं के पचड़े में नहीं पड़ता

दो समानांतर रेखाएं
आपस में
कभी नहीं मिलती
ऐसा रेखा गणित के जानकार
बताते हैं

लेकिन प्रेम में डूबे दो अजनबी
बताते हैं कि
जब हम खींचते हैं
एक दूसरे के
पास आने के लिए रेखा
तब 
दोनों रेखाएं
समानांतर होते हुए भी
एक छोर से
दूसरे छोर को
मिलाने की कोशिश करते हैं

इस तरह का झुकाव
समानांतर होते हुए भी
दो 
सीधी रेखाओं को 
आपस में जुड़ने का
मशविरा देता है

क्योंकि
प्रेम
रेखा गणित की
रेखाओं में
नहीं उलझना चाहता
वह तो
दो रेखाओं का
घेरा बनाकर
इसके भीतर
बैठना चाहता है

प्रेम 
रेखाओं के पचड़े में नहीं पड़ता 
वह
अपने होने
और अपने प्रेम के वजूद को
सत्यापित करने की
कोशिश करता है--- 

◆ज्योति खरे

बुधवार, जनवरी 03, 2024

तुम्हारी चीख में शामिल होगा

तुम्हारी चीख में शामिल होगा
***********************
अखबार के मुखपृष्ठ में 
लपेटकर रख लिए हैं
तुम्हारे लिखे प्रेम पत्र
और गुजरा हुआ साल
  
जब
बर्फ़ीली हवाओं में 
ओढ़ कर बैठूंगा रजाई
तो पढूंगा प्रेम पत्र और 
बीते हुए साल का लेखा-जोखा

उम्मीदें खुरदुरी जमीन पर
कहाँ दौड़ पाती हैं 

तुम जब लिख रही थी
प्रेम पत्र और उनमें
बैंडेज की पट्टी के साथ
चिपका रही थी गुलाब
डाल रहीं थी सपनों की स्वेटर में फंदा
उसी समय
राजधानी में रची जा रही थी
धर्म को, ईमान को 
और 
मनुष्य की मनुष्यता की पहचान को
मार डालने की साजिशें 

ऐसे खतरनाक समय में 
प्रेम कहाँ जीवित रह पाता है

मैं अपने ही घर से बेदखल 
होने की बैचेनियों से गुजर रहां हूं
लड़ रहा हूं 
साज़िशों के खिलाफ़

तुम भी तो
गुजर रही हो इसी दौर से
जब कभी घबड़ाओ 
तो बहुत जोर से चीखना 
तुम्हारी चीख में शामिल होगा
एक सवाल
आसमान तुम चुप क्यों हो----

 ◆ज्योति खरे