सोमवार, फ़रवरी 08, 2021

गुलाब

गुलाब
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कांटेदार तनों में
खिलते ही 
सम्मोहित कर देंने वाले 
तुम्हारे रंग
और
देह से उड़ती जादुई
सुगंध को सूंघने
भौंरों का 
लग जाता है मजमा
सुखी आंखों से
टपकने लगता है
महुए का रस

जब
तने से टूटकर 
प्रेम में सनी 
हथेलियों में तुम्हें
रख दिया जाता है

उन हथेलियों को
क्या मालूम
गुलाब की पैदाईश
बीज से नहीं 
कांटेदार कलम को
रोपकर होती है

गुलाबों के
सम्मोहन में बंधा यह प्रेम
एक दिन
सूख जाता है

प्रेम को  
गुलाब नहीं
गुलाब का 
बीज चाहिए----

"ज्योति खरे"

19 टिप्‍पणियां:

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

वाह।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

व्यथा गुलाब की

रेणु ने कहा…


प्रेम को
गुलाब नहीं
गुलाब का
बीज चाहिए----
गुलाब के बहाने प्रेम का लाज़वाब दर्शन !!!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लाजवाब हमेशा की तरह

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-02-2021) को "बढ़ो प्रणय की राह"  (चर्चा अंक- 3973)   पर भी होगी। 
-- 
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
-- 
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
--

Jyoti khare ने कहा…

बहुत आभार आपका

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ज्योति जी जो कुछ सोचने पर विवश करती है ।

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत ही सुंदर

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

लाजवाब ! प्रेम को परिभाषित करती सुन्दर कृति..

Meena Bhardwaj ने कहा…

प्रेम को
गुलाब नहीं
गुलाब का
बीज चाहिए----
लाजवाब ...अत्यंत सुन्दर और गहन भावाभिव्यक्ति ।

Dr Varsha Singh ने कहा…

प्रेम को
गुलाब नहीं
गुलाब का
बीज चाहिए

बहुत अच्छी पंक्तियां...
सुंदर सृजन

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Sarita Sail ने कहा…

वाह सुंदर सृजन

Amrita Tanmay ने कहा…

बेहद खूबसूरत अहसास... एकदम जुदा सा ।

बेनामी ने कहा…

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