गुरुवार, मार्च 24, 2022

सन्नाटे से संवाद


कुएं के पास 
उसके आने के इंतज़ार में
घंटों खड़ी रहती 
बरगद की छांव तले बैठकर
मन में उभरती 
उसकी आकृति को
छूने की कोशिश करती थी
तालाब में कंकड़ फेंकते समय
यह सोचती थी
कि,वह आकर 
मेरा नाम पूछेगा

वह आसपास मंडराता रहा
और मुझसे मिलने
मेरे पास बैठने से
कतराता रहा 

दशकों बाद
एकांत में बैठी मैं
घूरती हूं सन्नाटे को
और सन्नाटा 
घूरता है मुझे
इस तरह से
एक दूसरे को घूरने का मतलब
कभी समझ में आया ही नहीं  

समझ तो तब आया
जब सन्नाटे ने चुप्पी तोड़ी
उसने पूछा
एकांत में बैठकर
किसे देखती हो
मैंने कहा
जिसने मुझे
अनछुए ही छुआ था
उसकी छुअन को पकड़ना चाहती हूं 

काश!
वह एक बार आकर 
मुझे फिर से छुए
और मेरी आँखें
मुंद जाये गुदगुदी के कारण--

◆ज्योति खरे