मेरे हिस्से का बचा हुआ प्रेम
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फूलों को देखकर कभी नहीं लगता
कि,एक दिन मुरझा कर
बिखर जाएंगे ज़मीन पर
तितलियों को उड़ते देखकर भी कभी नहीं लगा
कि,इनकी उम्र बहुत छोटी होती है
समूचा तो कोई नहीं रहता
देह भी राख में बदलने से पहले
अपनी आत्मा को
हवा में उड़ा देती है
कि,जाओ
आसमान में विचरण करो
लेकिन मैं
स्मृतियों के निराले संसार में
जिंदा रहूंगा
खोलूंगा
जंग लगी चाबी से
किवाड़ पर लटका ताला
ताला जैसे ही खुलेगा
धूल से सनी किताबों से
फड़फड़ाकर उड़ने लगेंगी
मेरी अनुभूतियां
सरसराने लगेंगी
अभिव्यक्तियां
जो अधलिखे पन्नों में
मैंने कभी दर्ज की थी
पिघलने लगेगी
कलम की नोंक पर जमी स्याही
पीली पड़ चुकी
उपहार में मिली
कोरी डायरी में
अब मैं नहीं
लोग लिखेंगे
मेरे हिस्से का
बचा हुआ प्रेम---
◆ज्योति खरे
23 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.7.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4490 में दिया जाएगा
आभार
वाह
बेहतरीन❤️🧡💙
वाह!बहुत खूब!
पीली पड़ चुकी
उपहार में मिली
कोरी डायरी में
अब मैं नहीं
लोग लिखेंगे
मेरे हिस्से का
बचा हुआ प्रेम---
बहुत खूब । आज तो गज़ब ही लिख दिया ।
वाह! श्र्लाघ्य भाव सृजन।
सादर साधुवाद।
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
बहुत सुंदर सृजन
अब मैं नहीं
लोग लिखेंगे
मेरे हिस्से का
बचा हुआ प्रेम-
बहुत खूब, हमारे हिस्से का बचा हुआ प्रेम जाने के बाद ही मिलता है। लाजवाब अभिव्यक्ति आदरणीय सर, 🙏
आभार आपका
वाह!!!
मन को छूती बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
सराहनीय।
सादर
आभार आपका
आभार आपका
सुन्दर भावपूर्ण सृजन , साधु !
आभार आपका
पर जमी स्याही
पीली पड़ चुकी
उपहार में मिली
कोरी डायरी में
अब मैं नहीं
लोग लिखेंगे
मेरे हिस्से का
बचा हुआ प्रेम---
बहुत सुंदर रचना ।
This is Very very nice article. Everyone should read. Thanks for sharing. Don't miss WORLD'S BEST GAMES
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
greetings from malaysia
द्वारा टिप्पणी: muhammad solehuddin
let's be friend
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