सोमवार, जुलाई 22, 2019

पढ़ना जरूरी है


बारूद में लिपटी
जीवन की किताब को
पढ़ते समय
गुजरना पड़ता है
पढ़ने की जद्दोजहद से

दहशतजदा हवाओं का
खिड़कियों से सर्राते चले आना
छत के ऊपर किसी
आतातायी के भागते समय
पैरों की आवाजें आना
खामोश दीवारों की परतों का
अचानक उधड़ कर गिर जाना
बच्चों की नींद की तरह
कई-कई सपनों को
चौंककर देखना
ऐसे समय में भी
पढ़ना तो जरूरी है

जीवन की कसैली नदी में
तैरते समय
डूबने की फड़फडाहट में
पकड़ाई आ जाता है
आंसुओं की बूंदों से भरा आंचल

अम्मा ले आती हैं हमेशा
जीवन के डूबते क्षणों म़े
कसैली नदी से निकालकर
पकड़ा देती है
बारुद से लिपटी किताब

अगर नहीं पढ़ोगे किताब
तो दुनियां में लगी आग को
कैसे बुझा पाओगे---

"ज्योति खरे"

8 टिप्‍पणियां:

नये रास्ते ने कहा…

बहुतखूब सर जी।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

हमेशा की तरह लाजवाब।

Sweta sinha ने कहा…

विचारोत्तेजक सराहनीय सृजन सर।
बहुत अच्छा लिखा है आपने👌

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-07-2019) को "नदारत है बारिश" (चर्चा अंक- 3406) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Nitish Tiwary ने कहा…

बहुत सुंदर कविता। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

आदरणीय बेहतरीन प्रस्तुति अ*ले आती है हमेशा जीवन के डूबते क्षणों में कसैली नदी से निकलकर पकड़ा देती हैं बारूद में लिपटी किताब.... अगर नहीं पड़ोगे किताब तो दुनियां में लगी आग को कैसे बुझा पाओगे

शरद कोकास ने कहा…

बारूद में लिपटी जीवन की किताब में एक द्वंद्वात्मकता तो है लेकिन बात कुछ स्पष्ट नहीं हो रही है इसमें विरोधाभास अधिक दिखाई दे रहा है
बाकी कविता अच्छी है

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस - मैथिलीशरण गुप्त और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।