मंगलवार, मार्च 17, 2020

कोरोना


विषाणु
कतई लापरवाह नहीं है
इसे याद है 
अपना शिविर-घर
चालाक और समझदार भी है
जानता है कि
इसके इशारे से ही 
दिल धड़केगा 
या नहीं धड़केगा
आंसुओं का बहना या ना बहना
यही तय करेगा

समय की नब्ज को 
टटोलकर पहले इसने जाना
कि,जब समूची दुनियां के मनुष्य
अपने ही आप से झूझ रहें हों
तो आसानी से इनके भीतर
घुसा जा सकता है

वह यह भी जानता है कि 
मनुष्य 
हजार विडंबनाओं के बावजूद 
प्रेम-स्पर्श और सदभाव के
रास्ते चलता है

वह चुपचाप 
सदभाव के रास्ते चला
अंधेरे और उजाले के बीच के क्षणों में 
आक्सीजन में मिले कणों के साथ
भीड़ भरे इलाकों में घुसकर 
बना लिया
लाल,सफ़ेद रक्त कोशिकाओं के मध्य
अपना शिविर-घर

माईक्रोस्कोप से गुजरते हुए
दुनियां की किसी प्रयोगशाला में
नहीं पकडा़या 

वह कौन था----?
जिसने इसे पहली बार 
महसूसा होगा
परखा होगा
सुख को दुःख में बदलने के बाद
प्रेम को प्रेम से बिछडने के बाद

शायद
इसी शख्स ने रखा होगा
इस अद्रश्य सूक्ष्म विषाणु का नाम
मृत्यु का तांडव
कोरोना


10 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लाजवाब।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और सामयिक

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Anita ने कहा…

कोरोना ने समूची मानवता को हिला दिया है, सामयिक विषय पर सुंदर रचना !

Nitish Tiwary ने कहा…

सुंदर और सार्थक कविता।

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Sudha Devrani ने कहा…

वह यह भी जानता है कि
मनुष्य
हजार विडंबनाओं के बावजूद
प्रेम-स्पर्श और सदभाव के
रास्ते चलता है
बहुत सटीक... समसामयिक लाजवाब सृजन।

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका