गुरुवार, सितंबर 22, 2022

तुम्हें उजालों की कसम

तुम्हें उजालों की कसम
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मैंने तुम्हें 
चेतन्य आंखों से देखा है
लपटों से घिरा
ज्वालाओं से प्रज्जलित
मेरा 
आखिरी सम्बल भी विचलित
आंखों में आंसू नहीं
लेकिन
मन अग्निमय हो रहा
जाने कहाँ मेरा अतीत 
धुंध में खो रहा
तुझे मानसपटल से कैसे
उतार फेंकूं
ह्रदय में
स्मृति स्नेह अंकित हो रहा

तू इसे नहीं ले जा सकता
कष्टकित,भयानक
विचार श्रृंखलालाएं आती

हाथ उठाकर आंखें जो छुई
मैं खुद ही चोंक पड़ी
प्रबल ज्वाला की गोद में
जलधारा बह चली
पत्थर का ह्रदय है
फिर भी
आंसू ढ़लकने लगे तो
यह कोई रहस्य नहीं
प्रेम है

मेरे घायल मस्तिष्क की पीड़ा को
तेरी स्मृतियों का छूना
तेरे कल्याणकारी स्पर्श में
समा जाती है
हर पीड़ा

कुछ सोचो
भविष्य की गोद
इतनी अंधकारमय है
कि,ज्योतिषियों की आंखें भी
पग पग धोखा खाती हैं
अब न जाओ दूर 
मेरी आत्मा तुम्हें पुकारती है

तुम्हें 
उजालों की कसम----

◆ज्योति खरे

21 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

प्रबल ज्वाला की गोद में
जलधारा बह चली
पत्थर का ह्रदय है
फिर भी
आंसू ढ़लकने लगे तो
यह कोई रहस्य नहीं
प्रेम है

.. सच सच्चा प्रेम हो तो पत्थर भी पिघल जाते हैं
बहुत सुन्दर

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 23 सितंबर 2022 को 'तेरे कल्याणकारी स्पर्श में समा जाती है हर पीड़ा' ( चर्चा अंक 4561) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सीमाहीन समर्पण ..... पीड़ा में भी सुख अनुभव करता है ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ज्योति जी ,
आज तो लगता है आपने कुछ जल्दबाजी में ये रचना पोस्ट कर दी है .... टाइपिंग की कुछ कमियाँ दिख रही हैं ,
चेतन्य / चैतन्य
प्रज्जलित / प्रज्ज्वलित
आंखों / आँखों
आंसू / आँसू
चोंक / चौंक
ह्रदय / हृदय
आपकी इतनी गंभीर रचना को वर्तनी की अशुद्धियों के साथ पढ़ना थोड़ा कष्टकारी लगा । मेरी इस गुस्ताख़ी के लिए करबद्ध क्षमा प्रार्थी हूँ ।

Anita ने कहा…

स्पर्श यदि कल्याणकारी हो तो विष को भी अमृत में बदल देता है, प्रेम की कोई सीमा नहीं होती, हर पीड़ा को अपने समोने की ताक़त है उसमें!

Alaknanda Singh ने कहा…

अद्भुत लेखन...रचना ने मन झंकृत कर दिया ज्‍योति जी...मेरे घायल मस्तिष्क की पीड़ा को
तेरी स्मृतियों का छूना
तेरे कल्याणकारी स्पर्श में
समा जाती है
हर पीड़ा...वाह

मन की वीणा ने कहा…

अप्रतिम भाव अप्रतिम शब्द सौंदर्य।
मन को स्पर्श करती रचना।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

Onkar Singh 'Vivek' ने कहा…

वाह! भावपूर्ण

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

मैं अपनी गलतियों को स्वीकारता हूं, मुझे लिखने के बाद कई बार पढ़ना था
सचेत करने के लिए बहुत आभार आपका
सादर

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

सुंदर एहसासों की भवाभिव्यक्ति। गहन रचना ।

Tarun / तरुण / தருண் ने कहा…

अनुभूतियों को साँझा कराती एक सामायिक रचना , साधु !

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

उत्तम सृजन...