शुक्रवार, अगस्त 25, 2023

छूने के बहाने

छूने के बहाने
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मेरी हरकतों से
खीजने के बावजूद
कई बार
मुझसे बात करने की कोशिश करती हो
और जब मैं उत्तर नहीं देता हूं तो
रात में
तकिए से लिपटकर
मेरी शिकायत करती हुई
अपने आप को
सुलाने की कोशिश करती हो
ताकि सुबह
निपटा सको
घर के अधूरे पड़े काम

मैं भी
तुम्हारी बातें सुनकर
झल्लाने लगता हूँ
और दिनभर का थकाहारा
बिस्तर पर लेटकर
बिना नींद के 
आँखें मूंद लेता हूँ 

हम दोनों जानते हैं
देर तक 
नहीं छोड़ सकते एक दूसरे को अकेला
यह भी जानते हैं कि
झगड़े के बिना
रह भी नहीं सकते हैं

हम दोनों
आंखें मूंद कर भी
पहचान लेते हैं
एक दूसरे की
गुदगुदे अहसास से भरी
रोज़ाना की शिकायतें

पढ़ लेते हैं
देर तक 
बार बार 
करवट बदलने की भाषा
आंखों में तैरती नींद
आखिरकार
उठ कर बैठ जाती है

कुछ देर बाद
हंसने लगते हैं अपन दोनों

जाने लगती हो
मुझे झिड़ककर 
मैं रोक नहीं पाता 
अपने आपको
पकड़कर चूम लेता हूं
तुम्हारा हाथ

छूने के बहाने
फेरता हूं
माथे पर उंगलियां
तुम हो जाती हो तरोताजा

हम दोनों 
किसी न किसी बहाने 
एक दूसरे को 
छूते रहते हैं--

◆ज्योति खरे

8 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बेहद खूबसूरत अह्सास...
प्रेम का सही स्वरूप यही तो है #chandana

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

हकीकत है :) लाजवाब

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Sweta sinha ने कहा…

बेहद सुंदर शब्दचित्र खींचा है आपने सर जिसमें निहित एहसास बेहद चिरपरिचित हैं।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सर।
एक लंबे अंतराल के बाद आपकी रचना पढ़ना अच्छा लग रहा है। आशा है आप सक्रियता बनाये रखेंगे।
प्रणाम सर।
सादर।

Jyoti khare ने कहा…

अब पूरी कोशिश होगी कि सक्रिय रहूं
आभार आपका

Anita ने कहा…

कोमल अहसासों से बुनी सुंदर रचना

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका