रविवार, मई 01, 2022

मजदूर

मजदूर 
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सपनों की साँसें 
सीने में
बायीं ओर झिल्ली में बंद हैं
जो कहीं गिरवी नहीं रखी
न ही बिकी हैं,
नामुमकिन है इनका बिकना

गर्म,सख्त,श्रम समर्पित हथेलियों में
खुशकिस्मती की रेखाएं नहीं हैं
लेकिन ये जो हथेलियां हैं न !
इसमें उंगलियां हैं
पर पोर नहीं
सीधी-सपाट हैं
नाख़ून पैने
नोचने-फाड़ने का दम रखते हैं 

पैरों की एड़ियां कटी-फटी,तलवे कड़े
घुटने,पंजे,पिडलियां कठोर
पांव जो महानगरीय सड़कों पर 
सुविधा से नहीं चल पाए
राजपथ में
दौड़ने का साहस रखते हैं

छाती में विशाल हृदय 
मजबूत फेफड़ा है
जिसकी झिल्ली में बंद हैं
सपनों की साँसे 

इन्हीं साँसों के बल 
कल जीतने की लड़ाई जारी है
और जीत की संभावनाओं पर
टिके रहने का दमखम है
क्योंकि,
इन्हीं साँसों की ताकत में बसा है 
मजदूर की
खुशहाल ज़िन्दगी का सपना----

◆ज्योति खरे

मजदूर दिवस जिंदाबाद

रविवार, अप्रैल 24, 2022

किस्से सुनाने

किस्से सुनाने
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बारूद में लिपटी
जीवन की किताब को
पढ़ते समय
गुजरना पड़ता है
पढ़ने की जद्दोज़हद से

दहशतजदा दीवारों में 
जंग लगी
खिड़कियों को बंद कर
देखना पड़ता है
छत की तरफ़
नींद में चौंककर
रोना पड़ता है
बच्चों की तरह

पत्थर में बंधे
तैरते समय को
डूबने से बचाने
फड़फड़ाना पड़ता है
कि कहीं डूब न जाए
रेगिस्तानी नदी में

अपने वजन से भी ज्यादा
किताबें उठाकर
जंगली दुनियां से निकलकर
भागना चाहता हूं
गिट्टियों की शक्ल में 
टूट रहे पहाड़ों के बीच
उन्हें
किताबों में लिखे
सच्ची मुच्ची के
किस्से सुनाने---

◆ज्योति खरे

गुरुवार, अप्रैल 14, 2022

फिर लिखूंगी नए सिरे से

स्कूल की 
टाटपट्टी में बैठकर
स्लेट में 
खड़िया से लिखकर सीखा
भविष्य का पहला पाठ
फिर प्रारंभ हुआ
अपने आप को
समझने का दूसरा पाठ
तीसरे पाठ में 
समझने लगी
दुनियादारी

इस शालीन दौर से गुजरते हुए
मुझे भी हुआ प्रेम
शायद उसे भी हुआ होगा
तभी तो 
मुझसे कहकर गया था
जा रहा हूँ शहर
जीने का साधन जुटाने
लौटकर आऊंगा
तुम्हें लेने

शिकायत नहीं है मुझे
उससे
कि वह लौटा नहीं

फैसला मेरे हाथ में है
कि,किस तरह जीवन बिताना है
छुपकर रोते हुए
या खिलखिलाकर
खुरदुरे रास्तों को पूर कर

हांथों की लकीरों को
रोज सुबह
माथे पर फेर लेती हूं
और शाम होते ही
बांस की खपच्चियों से
जड़ी खिड़की पर
खड़ी हो जाती हूँ
यादों में
नया रंग भरने

अपलक आंखों के
गिरते पानी से
एक दिन
धुल जाएंगे
सारे प्रतिबिम्ब
फिर नए सिरे से लिखूंगी
खड़िया से
स्लेट पर
इंतजार---

◆ज्योति खरे

मंगलवार, मार्च 29, 2022

31 मार्च मीना कुमारी की पुण्य तिथि पर


गम अगरबत्ती की तरह 
देर तक जला करते हैं--
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मीना कुमारी ने हिंदी के जाने माने गीतकार और शायर गुलजार जी से एक बार कहा था
"ये जो एक्टिंग मैं करती हूं उसमें एक कमी है,ये फन,ये आर्ट मुझसे नहीं जन्मा है,ख्याल दूसरे का,किरदार किसी का और निर्देशन भी किसी का,मेरे अंदर से जो जन्मा है,
वह मैं लिखती हूं,जो कहना चाहती हूं,
वही लिखती हूं क्योंकि यह मेरा अपना है."

मीना कुमारी ने अपनी कविताएं छपवाने का जिम्मा गुलजार जी को दिया,जिसे उन्होंने "नाज" उपनाम से छपवाया,हमेशा तन्हां रहने वाली 
मीना कुमारी ने अपनी कई गज़लों के माध्यम से जीवन के इस दर्द को व्यक्त किया है.

' चांद तन्हां है आसमां तन्हां
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हां
रात देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हां '

' ये मेरे हमनशी चल कहीं और चल 
इस चमन में तो अपना गुजारा नहीं 
बात होती गुलों तक तो
सह लेते हम 
अब काँटों पर भी हक़ हमारा नहीं '

भारतीय फिल्मों में
मीना कुमारी को उच्च कोटि का अभिनेत्री माना जाता है ,क्योंकि वह ऐसा सागर था जिसकी थाह पाना मुस्किल था,बाहर से कौतूहल भरा,भीतर से गंभीर,उनके मन में कितने तूफान उमडते थे,यह कोई नहीं जानता था,बस सब इतना जानते थे कि वे एक अभिनेत्री हैं.
मीना कुमारी वास्तविक प्रेम को सदैव महत्व दिया करती थीं,लेकिन प्रेम मार्ग में जो उन्हें ठोकरें मिली,उसी दर्द को जीते हुए उन्होंने  अभिनय किया और वे
दुखांत भूमिकाओं की रानी बन गयी.
दर्द,तड़प,और आंसुओं से भरी जिंदगी में उनके पास कुछ न था,उनके पास था तो बस उनका अपना शायराना अंदाज.

' मसर्रत पे रिवाजों का सख्त पहरा है  
ना जाने कौन सी उम्मीद पर दिल ठहरा है 
तेरी आँखों से छलकते हुये इस गम की कसम 
ये दोस्त दर्द का रिश्ता बहुत गहरा है '

मीना कुमारी का जन्म १अगस्त १९३२ में हुआ था,इनकी माँ इकबाल बेगम अपने जमाने की प्रसिद्ध अदाकारा थी,मीना कुमारी पर अपनी माँ का प्रभाव पड़ा और इनका झुकाव अभिनय की तरफ बढ़ा,उन दिनों वे गरीबी के दिन से गुजर रहीं थी,उस वक़्त उनकी उम्र करीब आठ साल की रही होगी,गन्दी सी बस्ती में रहने वाली बालिका पर एक दिन स्वर्गीय मोतीलाल की निगाह पड़ी और मीना जी का भाग्य वहीँ से चमकना शुरू हो गया,सर्वप्रथम मीना कुमारी ने "बच्चों का खेल" फिल्म में अभिनय किया,कुछ दिनों तक बाल अभिनेत्री के रूप में अभिनय करने के बाद मीना जी को फिल्मों से किनारा करना पड़ा,कुछ सालों बाद वाडिया ब्रदर्स ने उन्हें फिल्मों में पुनः स्थापित किया,फिर तो मीना जी निरंतर फिल्मो में काम करती रहीं.

' जिन्दगी आँख से टपका हुआ बे रंग कतरा 
तेरे दामन की पनाह पाता तो आंसू होता '

मीना कुमारी जिनका नाम "महज़बी" था दुखांत भूमिकाओं की रानी बन गयी,उनके पास दौलत,
शौहरत थी मगर प्रेम,प्यार नहीं था.
कमाल अमरोही से विवाह किया लेकिन बाद में अलग होना पड़ा,प्रेम की चाह अंत तक उनके ज़ेहन में बसी रही और उन्हें रुलाती रही.

' पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सदके की सहर होती है 
जैसे जागी हुई आँखों में चुभे कांच के ख्वाब 
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है '

भोली सूरत,बड़ी सी प्यारी आँखें और मासूम सा चेहरा,गुलाबी होंठ,सचमुच मीना जी समुद्र में पड़ते चंद्रमा के प्रतिबिम्ब के समान थीं,उनके मन में,प्यार था,सत्कार था,पर उनकी वास्तविक भावनाओं को समझने वाला कोई न था,उनकी आंखें ही बहुत कुछ बोलती थीं.

' बॊझ लम्हों का लिए कंधे टूटे जाते हैं           बीमार रूह का यह भार तुम कहीं रख दो 
सदियां गुजरी हैं कि यह दर्द पपोटे झुके
तपते माथे पर जरा गर्म हथेली रख दो '

गमों की राह से गुजरी
मीना जी वास्तव में एक हीरा थीं,वे प्यार जुटाना चाहती थी,प्यार पाना चाहती थी,प्यार बांटना चाहती थीं,इसी प्यार की प्यास ने उन्हे अंत तक भटकाया.
                      
' यूँ तेरी राहगुजर से दीवाना बार गुजरे
कांधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुजरे 
मेरी तरह सम्हाले कोई तो दर्द जानूं
एक बार दिल से होकर परवर दिगार गुजरे 
अच्छे लगे हैं दिल को तेरे ज़िले भी लेकिन
तू दिल को हार गुजरा
हम जान हार गुजरे '

एक बेहतरीन अदाकारा,एक बेहतरीन शायरा,अपने चाहने वालों को अपना प्यार,
दर्द और कुछ नगमें दे गयीं,ऐसा लगता है मीना जी आज भी तन्हाई में रह रहीं हैं और अपने चाहने वालों से कह कह रहीं हैं----

' तू जो आ जाये तो इन जलती हुई आँखों को
तेरे होंठों के तले ढेर सा आराम मिले            तेरी बाहों में सिमटकर तेरे सीने के तले 
मेरी बेखाव्ब सियाह रातों को आराम मिले

एक पाकीज़ा शायरा की यादें, 
प्यार करने वालों के दिलों में हमेशा जिन्दा रहेंगी--

◆ज्योति खरे

गुरुवार, मार्च 24, 2022

सन्नाटे से संवाद


कुएं के पास 
उसके आने के इंतज़ार में
घंटों खड़ी रहती 
बरगद की छांव तले बैठकर
मन में उभरती 
उसकी आकृति को
छूने की कोशिश करती थी
तालाब में कंकड़ फेंकते समय
यह सोचती थी
कि,वह आकर 
मेरा नाम पूछेगा

वह आसपास मंडराता रहा
और मुझसे मिलने
मेरे पास बैठने से
कतराता रहा 

दशकों बाद
एकांत में बैठी मैं
घूरती हूं सन्नाटे को
और सन्नाटा 
घूरता है मुझे
इस तरह से
एक दूसरे को घूरने का मतलब
कभी समझ में आया ही नहीं  

समझ तो तब आया
जब सन्नाटे ने चुप्पी तोड़ी
उसने पूछा
एकांत में बैठकर
किसे देखती हो
मैंने कहा
जिसने मुझे
अनछुए ही छुआ था
उसकी छुअन को पकड़ना चाहती हूं 

काश!
वह एक बार आकर 
मुझे फिर से छुए
और मेरी आँखें
मुंद जाये गुदगुदी के कारण--

◆ज्योति खरे

रविवार, मार्च 20, 2022

आजकल वह घर नहीं आती

आजकल वह घर नहीं आती
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धूप चटकती थी तब
लाती थी तिनके
घर के किसी सुरक्षित कोने में
बनाती थी अपना 
शिविर घर
जन्मती थी चहचहाहट
गाती थी अन्नपूर्णा के भजन
देखकर आईने में अपनी सूरत
मारती थी चोंच

अब कभी कभार
भूले भटके
आँगन में आकर
देखती है टुकुर मुकुर
खटके की आहट सुनकर
उड़ जाती है फुर्र से

शायद उसने धीरे धीरे
समझ लिया 
आँगन आँगन
जाल बिछे हैं
हर घर में
हथियार रखे हैं
तब से उसने 
फुदक फुदक कर
आना छोड़ दिया है---

◆ज्योति खरे
#विश्वगौरैयादिवस

मंगलवार, मार्च 15, 2022

टेसू और फागुन

टेसू और फागुन
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कटे हुए टेसू का हालचाल
पूंछने 
सालभर में एक बार आता है फागुन
टेसू फागुन से मिलते ही
टपकाने लगता है
विकास के पांव तले कुचले
खून से सने 
अपने फूलों के रंग

कहता है अपने दोस्त
फागुन से 
तुम
प्रेम के रंगों से भरे 
रहस्यों को
शहर की गलियों में
रह रहे लोगों को समझाओ
कुझ दिन झोपड़ पट्टी में भी गुजारो
भूखे बच्चों से बात करो
उजड़ रहे गांव में जाओ
जहां पैदा तो होता है अनाज
पर रोटियां की कमी है
एक चुटकी गुलाल
मजदूरों के गाल पर भी
मलो
क्योंकि इन्हें सम्हलने में लंबा समय लगेगा
मेरा क्या
मैं अपने कटे जाने की
पीड़ा से
एक दिन मुक्त हो जाऊंगा
सूखकर 
मिट्टी में मिल जाऊंगा

फागुन
तुम्हें हर साल आना है
क्यों सूख रहे हैं
प्रेम के रंग
उनका जवाब देना है ---

◆ज्योति खरे