रविवार, जुलाई 01, 2012

खुश रहो कहकर चला...

खुश रहो कहकर चला 
जानता हूँ उसने छला.............
सूरज दोस्त था उसका 
तेज गर्मी से जला............... 
चांदनी रात भर बरसी 
बर्फ की तरह गला................ 
उम्र भर सीखा सलीका 
फटे नोट की तरह चला.......... 
रोटियों के प्रश्न पर
उम्र भर जूता चला............. 
सम्मान का भूखा रहा 
भुखमरी के घर पला............ 
            "ज्योति"

1 टिप्पणी:

"Nira" ने कहा…

bahut sundar prastuti hai mubarak ho..