रविवार, जून 02, 2019

सावित्री का प्रेम आज भी जिंदा है-----


डंके की चोट पर
ऐंठ कर पकड़ ली
मृत्यु के देवता की कालर
विद्रोह का बजा दिया बिगुल 
निवेदनों की लगा दी झड़ी

गहरे धरातल से
खींच कर ले आयी
अपने प्रेम को
अपनी आत्मा को

बांध कर कच्चा सूत
बरगद की पीठ पर
ले गयी अपनी आत्मा को
सपनों की दुनियां से परे
नफरतों के वास्तविक गारे से बनी
कंदराओं में

अपने पल्लू में लपेटकर
ले आयी
शाश्वत प्रेम को

सावित्री होने का सुख
कच्चे सूत में पिरोए
पक्के मोतियों जैसा
होता है---------

"ज्योति खरे"

4 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

बेहद शानदार लाज़वाब अभिव्यक्ति सर👌

Meena sharma ने कहा…

बहुत सुंदर सर ! आपकी रचना बहुत सुंदर है और उसके भाव भी, किंतु....
मेरा मत है कि सावित्री होने का सुख स्त्री को हमेशा भरम में रखता है और उसके पुरुष को इस दंभ में कि चाहे जो करूँ, मेरी सावित्री है ना मुझे बचाने के लिए....

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जागना होगा, जिंदा बने रहने के लिए : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

Kamini Sinha ने कहा…

सुंदर रचना ,सादर नमस्कार सर