गुरुवार, दिसंबर 19, 2019

यूकेलिप्टस

यूकेलिप्टस 
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एक दिन तुम और मैं 
शाम को टहलते 
उंगलियां फसाये 
उंगलियों में 
निकल गये शहर के बाहर--

तुमने पूछा 
क्या होता है शिलालेख 
मैने निकाली तुम्हारे बालों से 
हेयरपिन
लिखा यूकेलिप्टस के तने पर 
तुम्हारा नाम----

तुमने फिर पूछा 
इतिहास क्या होता है 
मैने चूम लिया तुम्हारा माथा--

खो गये हम 
अजंता की गुफाओं में 
थिरकने लगे 
खजुराहो के मंदिर में 
लिखते रहे उंगलियों से 
शिलालेख 
बनाते रहे इतिहास--

आ गये अपनी जमीन पर 
चेतना की सतह पर 
अस्तित्व के मौजूदा घर पर--

घर आकर देखा था दर्पण 
उभरी थी मेरे चेहरे पर 
लिपिस्टिक से बनी लकीरें 
मेरा चेहरा शिलालेख हो गया था 
बैल्बट्स की मैरुन बिंदी 
चिपक आयी थी 
मेरी फटी कालर में 
इतिहास का कोई घटना चक्र बनकर--

अब खोज रहा हूं इतिहास 
पढ़ना चाहता हूं शिलालेख--

अकेला खड़ा हूं
जहां बनाया था इतिहास  
लिखा था शिलालेख 
इस जमीन पर 
खोज रहा हूं ऐतिहासिक क्षण--

लोग कहते हैं 
यूकेलिप्टस पी जाता है 
सतह तक का पानी 
सुखा देता है जमीन की उर्वरा--

शायद यही हुआ है 
मिट गया शिलालेख 
खो गया इतिहास--

अब शायद  
फिर लिख सकेंगे इतिहास 
अपनी जमीन का--

क्या तुम भी कभी 
देखती हो मुझे 
अपने मौजूदा जीवन के आईने में 
जब कभी तुम्हारी 
बिंदी,लिपिस्टिक 
छूट जाती है 
इतिहास होते क्षणों में---

 "ज्योति खरे" 

10 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

"यूकेलिप्टस" के बहाने अनुपम रचना का सृजन, सादर

Jyoti khare ने कहा…

आभार भाई जी आपका

Meena Bhardwaj ने कहा…

अप्रतिम सृजन सर !

Kamini Sinha ने कहा…

क्या तुम भी कभी 
देखती हो मुझे 
अपने मौजूदा जीवन के आईने में 
जब कभी तुम्हारी 
बिंदी,लिपिस्टिक 
छूट जाती है 
इतिहास होते क्षणों में---

सुंदर ,भावपूर्ण रचना ,सादर नमन सर

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

रेणु ने कहा…

वाह !आदरणीय सर , समय का यूकेलिप्टस अक्सर रोमानियत के साक्षी शिलालेख और इतिहास के स्वरूप को बदल देता है | अपनी ही तरह की शानदार रचना | सादर शुभकामनायें |

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 20 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२१ -११ -२०१९ ) को "यह विनाश की लीला"(चर्चा अंक-३५५६) पर भी होगी।

चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

SUJATA PRIYE ने कहा…

शायद यहीं हुआ है
मिट गया शिलालेख
खो गया इतिहास
सुंदरतम,
अप्रतीम रचना।
सादर नमन