बुधवार, फ़रवरी 05, 2020

मेरी नागरिकता की पहचान


मेरी नागरिकता की पहचान
उसी दिन घोषित हो गयी थी
जिस दिन
दादी ने
आस-पड़ोस में
चना चिंरोंजी
बांटते हुए कहा था
मेरे घर
एक नया मेहमान आने वाला है
मेरी नागरिकता की पहचान
उसी दिन घोषित हो गयी थी
जिस दिन
मेरी नानी ने
छत पर खड़े होकर
पड़ोसियों से कहा था
मैं नानी बनने वाली हूं
मेरी नागरिकता की पहचान
किसी सरकारी सफेद पन्ने पर
काली स्याही से नहीं
लिखी गयी है
मेरी पहचान तो
मां के पेट में उभरी
लकीरों में दर्ज है
जो कभी मिटती नहीं हैं
सृष्टि का यह सत्य
हमारी नागरिकता की वास्तविक
पहचान है---

9 टिप्‍पणियां:

Anita Laguri "Anu" ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-02-2020) को "गमों के बोझ का साया बहुत घनेरा "(चर्चा अंक - 3604) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है ….
अनीता लागुरी 'अनु '

Rohitas Ghorela ने कहा…

लाजवाब लाज़वाब
करारा जवाब।

मन की वीणा ने कहा…

बहुत बहुत सटीक, शानदार।

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत ही लाजवाब लिखा आपने बहुत ही शानदार पोस्ट

Kamini Sinha ने कहा…

मेरी पहचान तो
मां के पेट में उभरी
लकीरों में दर्ज है
जो कभी मिटती नहीं हैं

बेहतरीन सर ,सादर नमन आपको

Alaknanda Singh ने कहा…

जी न‍िश्च‍ित ही खरे जी, सृष्ट‍ि के सत्य को कौन नकारता है ... बहुत खूब ल‍िखा है स्पेशली नानी का उच्चारना...

सदा ने कहा…

वाह बहुत ही बढ़िया लिखा आपने ... हमेशा की तरह निःशब्द करता सृजन

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
क्या बात....
बहुत लाजवाब

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

और इसी नागरिकता पर ही तो प्रश्नचिन्ह लग गया है. बहुत सुन्दर भाव. बधाई.