रविवार, मार्च 20, 2022

आजकल वह घर नहीं आती

आजकल वह घर नहीं आती
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धूप चटकती थी तब
लाती थी तिनके
घर के किसी सुरक्षित कोने में
बनाती थी अपना 
शिविर घर
जन्मती थी चहचहाहट
गाती थी अन्नपूर्णा के भजन
देखकर आईने में अपनी सूरत
मारती थी चोंच

अब कभी कभार
भूले भटके
आँगन में आकर
देखती है टुकुर मुकुर
खटके की आहट सुनकर
उड़ जाती है फुर्र से

शायद उसने धीरे धीरे
समझ लिया 
आँगन आँगन
जाल बिछे हैं
हर घर में
हथियार रखे हैं
तब से उसने 
फुदक फुदक कर
आना छोड़ दिया है---

◆ज्योति खरे
#विश्वगौरैयादिवस

15 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर भाव।

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (21 मार्च 2022 ) को 'गौरैया का गाँव में, पड़ने लगा अकाल' (चर्चा अंक 4375 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

रेणु ने कहा…

बहुत संवेदनशील रचना आदरणीय सर | चिड़िया विवेक की धनी है | वह शातिर मानव के छल प्रपंच सब जान गयी | इसीलिये उसके जीवन से प्रायः दूर चली गयी |

Meena Bhardwaj ने कहा…

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

नूपुरं noopuram ने कहा…

आपको जान कर खुशी होगी, हमारी खिङकी में लगे लकङी के घरों में,गौरैया के कई परिवार आए रहे । लाॅकडाउन में कोरोना नाम का महा खलनायक और भी छोटी चिङियों को महानगर की खिङकी तक ले आया ।

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

मन की वीणा ने कहा…

सहज भाव लिए सहज अभिव्यक्ति।
सुंदर।

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

बहुत सुंदर, सराहनीय अभिव्यक्ति ।

Alaknanda Singh ने कहा…

गौरैया की याद में ...शायद उसने धीरे धीरे
समझ लिया
आँगन आँगन
जाल बिछे हैं
हर घर में
हथियार रखे हैं...क्‍या खूब कहा है आपने ज्‍योति जी