लौटा वर्षों बाद गांव में
सहमा सा चौपाल मिला
प्यार का रिश्ता सहेजे
धड़कनों को साथ लाया खिलखिलाती चलते बनी----
सभ्यता का पाठ पढ़ने
दौड़कर बचपन गया था
आज तक कच्ची खड़ी है
वह इमारत अधबनी----
टाट पर बैठे हुए हैं
भूख से बेहाल बच्चे
धर्म की खिचड़ी परोसी
खैरात वाली कुनकुनी----
नीम कड़वी ही भली
रोग की शातिर दवा है
दर्द थोड़ा ठीक है
तबियत लेकिन अनमनी-----
"ज्योति खरे"
16 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना ।
बहुत सुंदर.....
सभ्यता का पाठ पढ़ने
दौड़कर बचपन गया था
आज तक कच्ची खड़ी है
वह इमारत अधबनी----
हमेशा की तरह लाजवाब ....
सभ्यता का पाठ पढ़ने
दौड़कर बचपन गया था
आज तक कच्ची खड़ी है
वह इमारत अधबनी----
हमेशा की तरह लाजवाब ....
सुन्दर रचना !
उम्दा भाव से निहित रचना के लिए बधाई..
बहुत खूब...सुन्दर कथ्य...
लौटा वर्षों बाद गांव में
सहमा सा चौपाल मिला
रात भर अम्मा की बातें
आंख ने रोते सुनी---
बहुत खूब ... यादों की बीते दिनों की बातें ... मन को अक्सर नम कर देती हैं ... बेहतरीन प्रस्तुति ...
Bahut hee marmik prastuti......hamrey gaon ka haal shayad yahi hai aajkal...........
बहुत सुन्दर।
सुंदर अभिव्यक्ति .
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (30.05.2014) को "समय का महत्व " (चर्चा अंक-1628)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
आपकी लिखी रचना शनिवार 31 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
लाजवाब .बहुत सुंदर रचना ।
दर्द थोडा ठीक है
तबियत है लेकिन अनमनी।
बहुत ही सुंदर।
Lajawaab utkrisht Rachna...
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