गुरुवार, अगस्त 04, 2022

प्रेम को नमी से बचाने

प्रेम को नमी से बचाने
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धुओं के छल्लों को छोड़ता
मुट्ठी में आकाश पकड़े
छाती में 
जीने का अंदाज बांधें
चलता रहा 
अनजान रास्तों पर 

रास्ते में
प्रेम के कराहने की 
आवाज़ सुनी 
रुका 
दरवाजा खटखटाया 
प्रेम का गीत बाँचा
जब तक बाँचा 
जब तक 
प्रेम उठकर खड़ा नहीं हुआ 

गले लगाया 
थपथपाया
और उसे संग लेकर चल पड़ा
शहर की संकरी गलियों में

दोनों की देह में जमें
प्रेम को
बरसती गरजती बरसात
बहा कर 
सड़क पर न ले आये
तो खोल ली छतरी
खींचकर पकड़ ली 
उसकी बाहं
और निकल पड़े 
प्रेम को नमी से बचाने
ताकि संबंधों में 
नहीं लगे फफूंद---  

◆ज्योति खरे

13 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लाजवाब

Meena Bhardwaj ने कहा…

अप्रतिम भावों को संजोए लाजवाब सृजन ।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

निकल पड़े
प्रेम को नमी से बचाने
ताकि संबंधों में
नहीं लगे फफूंद---
..सुंदर भावप्रवण रचना ।

Kamini Sinha ने कहा…

और निकल पड़े
प्रेम को नमी से बचाने
ताकि संबंधों में
नहीं लगे फफूंद---
वाह! गहरे भाव समेटे लाजवाब सृजन आदरणीय सर 🙏

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

लाजवाब । बहुत सुंदर भाव

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
प्रेम को नमी से बचाने...
लाजवाब सृजन।

Vaanbhatt ने कहा…

अँचार हो या रिश्ते...बिना केयर के फफूँद लगनी स्वाभाविक है...👍

Preeti Mishra ने कहा…

लाजवाब लेखन सर

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Sarita sail ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति