वृद्धाश्रम में
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अच्छे नर्सरी स्कूल में
बच्चों के दाखिले के लिए
सिफारिश का इंतजाम
पहले से किया जाने लगता है
क्यों कि बच्चे
भविष्य की उम्मीद होते हैं
इस दौडा़ भागी में
बूढे मां बाप का तखत
टीन का पुराना संदूक
भगवान का आसन
कांसे का लोटा
लाठी, छाता
चमड़े का बैग
जिसमें पिता के पुराने कागजात रहते हैं
अम्मा की कत्थई रग की पेटी
जो मायके से लायी थी
चीप से बनी खुली अलमारी में
रख दी जाती हैं
दिनभर इस काम को निहारते
पिता और अम्मा सोचते हैं
शायद घर को
और सजाया संवारा जा रहा है
शाम को
गिलकी की भजिया और
सूजी का हलुआ
परोसते समय
कह दिया जाता है
अब आप लोग
पीछे वाले
कमरे में रहेंगे
बेटा अब स्कूल जायेगा
शाम को बाहर वाले कमरे में
वह टियूशन पढ़ेगा
बेटे के भविष्य को बनाने
बूढ़ों को
पीछे घसीट कर डाल दिया जाता है
वृद्धाश्रम में
बूढ़ों को रखने की
होड़ सी मची है
बेटा शाम को लौटते समय
एक फार्म ले आया है
पिता
पिता ही होता है
वे आज खाने की मेज पर नहीं बैठे
भीतर बसी
चुप्पियों को तोड़ते बोले
घर में जगह नहीं बची
वृद्धाश्रम में
बची है
तुम्हें तुम्हारे
सुख की हंसी की शुभकामनाएं
मैं अपने साथ
अपने सपनों को ले जाउंगा
वृद्धाश्रम के
खुरदुरे आंगन में
अपनों के साथ
रेत का घरौंदा बनाउंगा-----
"ज्योति खरे"
21 टिप्पणियां:
ओहह बेहद मर्मस्पर्शी सृजन सर।
रचना चलचित्र की भाँति दृश्य पटल पर तैर गयी।
जिसे सोचने से भी पीड़ा होने लगे। कैसे कर लेते होंगे लोग?
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (02-10-2019) को "बापू जी का जन्मदिन" (चर्चा अंक- 3476) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 2 अक्टूबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
बहुत ही हृदय स्पर्शी रचना, अंतर तक द्रवित करती।
बहुत संतुलित भाषा थोड़े में बड़ा कहती ।
द्रवित भी और बेबस भी। अपनी आँखों के सामने कई वृद्धों का यह हाल देखा है। समाज के डर से वृद्धाश्रम नहीं भेजते पर घर में रखकर भी उनसे जो व्यवहार करते हैं बच्चे, इस सब को देख देखकर मैं तो वृद्धाश्रम के फेवर में हो गई हूँ
हृदय स्पर्शी सृजन.... वर्तमान का सच उजागर करती प्रभावशाली रचना |
सादर
ओह ! कितनी हृदय विदारक स्थितियां और निर्मम बच्चे कितनी आसानी से अपने वृद्ध जर्जर माता पिता को ऐसे कठोर निर्देश दे देते हैं बिना किसी माया ममता के ! बहुत ही सुन्दर सृजन ! कुछ कुछ ऐसी ही मेरी एक रचना है आपको उसकी लिंक दे रही हूँ ! समय मिले तो अवश्य पढियेगा ! सादर !
https://sudhinama.blogspot.com/2014/01/blog-post.html
बेहद मर्मस्पर्शी सृजन सर ,सादर नमस्कार
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
नमस्ते.....
आप को बताते हुए हर्ष हो र हा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 17/04/2022 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....
यही हाल चलता रहा वंश बढ़ना बन्द हो जाएगा
प्रलय हो काल बदल जाये तो बदलाव हो
मार्मिक रचना
दिल को छूती सच्चाई!
आज का सच ।
ज़रूरी है
अपेक्षाएँ खत्म
कर दी जाएँ ।
ज़रूरी तो नहीं कि
आज के बच्चों पर
दोहरा बोझ
डाल दें
हमने
अपने बच्चों के लिए किया
वो अपने बच्चों
के लिए करेंगे
कौन कहता है कि
आज के बच्चे कुछ नहीं करते ।
अब इसी सोच की ज़रूरत है ।।बेहतरीन लिखा ।
भावपूर्ण रचना
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