रविवार, दिसंबर 29, 2019

जिन्दा रहने की वजह

जिन्दा रहने की वजह
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सम्हाल कर रखा है
तुम्हारे वादों का
दिया हुआ
ब्राउन रंग का मफलर
बांध लेता हूँ
जब कभी
तब कान में फुसफुसाकर
कहती है ठंड
कि, आज बहुत ठंड है

इन दिनों
उबलते देश में
गिर रही है बर्फ
दौड़ रही है शीत लहर
जानता हूँ
तुम्हारी भी तासीर
बहुत गरम है
पर
मेरी ठंडी यादों को
गर्माहट देना
ओढ़ लेना
मेरा दिया हुआ
ऊनी आसमानी शाल

बहकते, झुंझलाते
और भटकते इस दौर में
प्रेम
जिन्दा रहने की
वजह बनेगा-----

"ज्योति खरे"

13 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

बहुत सुंदर और.भावपूर्ण सृजन सर।
आपकी रचनाओं में यथार्थ और कल्पना का अनूठा संयोजन बेहद सराहनीय है सर।

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

और भटकते इस दौर में
प्रेम
जिन्दा रहने की
वजह बनेगा

लाजवाब।

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह ...
बहुत लाजवाब ... प्रेम की ठंडी उम्मीद को गर्म मफलर ...
हमेशा की तरह लाजवाब बिम्ब ...

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (30-12-2019) को 'ढीठ बन नागफनी जी उठी!' चर्चा अंक 3565 पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव

मन की वीणा ने कहा…

भावपूर्ण हृदय स्पर्शी सृजन।

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

Onkar ने कहा…

बहुत सुंदर

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका