दर्द में लिपटी एक पाकीज़ा की शायरी
मीना कुमारी की पुन्य तिथि पर
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ये मेरे हमनशी चल कहीं और चल
इस चमन में तो अपना गुजारा नहीं
बात होती गुलों तक तो सह लेते हम
अब काँटों पर भी हक़ हमारा नहीं
३१मार्च इसी दिन महान अभिनेत्री मीना कुमारी फ़िल्मी दुनियां को सूना कर इस संसार से विदा हो गयी,और अपने चाहने वालों के लिये एक सदमा छोड़ गयी,आज भी वह सदमा उनके चाहने वालों के दिल पर ज्यों का त्यों बना हुआ है।
चाँद तन्हां है,आसमां तन्हां
दिल मिला है,कहाँ कहाँ तन्हां
रात देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे यह जहां तन्हां
भारतीय फिल्मों में मीना कुमारी को उच्च कोटि का अभिनेत्री माना जाता था,क्योंकि वह ऐसा सागर था जिसकी थाह पाना मुस्किल था, बाहर से शांत पर भीतर से गंभीर,उनके मन में कितने तूफान उमडते यह कोई नहीं जानता था,बस सब इतना जानते थे कि मीना कुमारी वास्तविक प्रेम को सदैव महत्व दिया करती थीं।लेकिन प्रेम मार्ग में जो उन्हें ठोकरें मिली वही दर्द उनके अभिनय में दुखांत बनकर आया था,इसको भोगते हुये अभिनय करना, मीना कुमारी को दुखांत भूमिकाओं की रानी बना गया जिसके जीवन में दर्द,तड़प,और आंसुओं के सिवा कुछ भी न था।
मसर्रत पे रिवाजों का सख्त पहरा है
ना जाने कौन सी उम्मीद पर दिल ठहरा है
तेरी आँखों से छलकते हुये इस गम की कसम
ये दोस्त दर्द का रिश्ता बहुत गहरा है
मीना कुमारी का जन्म १अगस्त १९३२ में हुआ था,इनकी माँ इकबाल बेगम अपने जमाने की प्रसिद्ध अदाकारा थी,मीना कुमारी पर अपनी माँ का प्रभाव पड़ा और इनका झुकाव अभिनय की तरफ बढ़ा,उन दिनों वे गरीबी के दिन से गुजर रहीं थी,उस वक़्त उनकी उम्र करीब आठ साल की रही होगी,गन्दी सी बस्ती में रहने वाली बालिका पर एक दिन स्वर्गीय मोतीलाल की निगाह पड़ी और मीना जी का भाग्य वहीँ से चमकना शुरू हो गया,सर्वप्रथम मीना कुमारी ने "बच्चों का खेल" फिल्म में भूमिका निबाही।
कुछ दिनों तक बाल अभिनेत्री के रूप में अभिनय करने के बाद मीना जी को फिल्मों से किनारा करना पड़ा,कुछ सालों बाद वाडिया ब्रदर्स ने उन्हें फिल्मों में पुनः स्थापित किया,फिर तो मीना जी निरंतर फिल्मो में काम करती रहीं।
जिन्दगी आँख से टपका हुआ बे रंग कतरा
तेरे दामन की पनाह पाता तो आंसू होता
मीना कुमारी जिनका नाम "महजबी"था दुखांत भूमिकाओं की रानी बन गयी,उनके पास दौलत,शौहरत थी मगर प्रेम,प्यार नहीं था कमाल अमरोही से विवाह कर किया लेकिन बाद में अलग होना पड़ा,प्रेम की चाह अंत तक उनके जेहन में बसी रही और उन्हें रुलाती रही।
पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सदके की सहर होती है
जैसे जागी हुई आँखों में चुभे कांच के ख्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है
भोली सूरत,प्यारी आँखें और मासूम सा चेहरा,गुलाबी होंठ---सचमुच मीना जी समुद्र में पड़ते चंद्रमा के प्रतिबिम्ब के समान थीं उनके मन में,प्यार था,सत्कार था,पर उनकी वास्तविक भावनाओं को कोई नहीं समझ पाया,उनकी आँखों से ही ह्रदय की सारी अभिव्यक्ति झलक उठती थी।
बॊझ लम्हों का लिये कंधे टूटे जाते हैं
बीमार रूह का यह भार तुम कहीं रख दो
सदियां गुजरी हैं कि यह दर्द पपोटे झुके
तपते माथे पर जरा गर्म हथेली रख दो
गम की राह से गुजरी मीना जी वास्तव में एक हीरा थीं, वे प्यार जुटाना चाहती थी, प्यार पाना चाहती थी, प्यार बांटना चाहती थीं,इसी प्यार की प्यास ने उन्हे अंत तक भटकाया।
यूँ तेरी राहगुजर से दीवाना बार गुजरे
कांधे पे अपने रख के अपना मजार गुजरे
मेरी तरह सम्हाले कोई तो दर्द जानूं
एक बार दिल से होकर परवर दिगार गुजरे
अच्छे लगे हैं दिल को तेरे जिले भी लेकिन
तू दिल को हार गुजरा हम जान हार गुजरे
दर्द की दुनियां में जीने वाली मीना जी आखिर यह संसार छोड़ गयीं,लेकिन अपनी शायरी में अपना दर्द बयां कर गयीं, एक बेहतरीन अदाकारा,एक बेहतरीन शायरा अपने चाहने वालों को अपना प्यार,दर्द और कुछ नगमें दे गयीं,ऐसा लगता है मीना जी आज भी तन्हाई में रह रहीं हैं और अपने चाहने वालों को कह कह रहीं हैं----
तू जो आ जाये तो इन जलती हुई आँखों को
तेरे होंठों के तले ढेर सा आराम मिले तेरी बाहों में सिमटकर तेरे सीने के तले
मेरी बेख्वाब सियाह रातों को आराम मिले-------
एक पाकीज़ा शायरा की यादें हमेशा जिन्दा रहेंगी प्यार करने वालों के दिलों में-----
"ज्योति खरे"