झूठ के हाँथों तलवार----
न्याय के चौखट तुम्हारे
फ़रियाद सहमी सी खड़ी है
सिसकियाँ सच बोलती हैं
कोतवाली सब बेकार ----
आ गये थे यह सोचकर
पेट भर भोजन करेंगे
छेद वाली पत्तलों का
दुष्ट जैसा व्यवहार ----
मरने लगी इंसानियत
कीटनाशक गोलियां से
संवेदना की धार धीमी
सूख रहा धुआंधार -----
चुप्पियों की उम्र क्या है
एक दिन विद्रोह होगा
आग धीमी जल रही
बस भड़कने का इंतजार ----
"ज्योति खरे"