अच्छा हुआ
इस सर्दीले वातावरण में
लौट आये हो--
बदल गई
बर्फीले प्रेम की तासीर
जमने लगीं
मौसम की नंगी देह पर
कुनकुनाहट-----
लम्बे अवकाश के बाद
सांकल के भीतर
होने लगी खुसुर-पुसुर
इतराने लगी दोपहर
गुड़ की लईया चबाचबा कर-----
वाह! बसंत
तुम अच्छे लगते हो
प्रेम के गीत गाते----
"ज्योति खरे"
चित्र- गूगल से साभार