सम्हाल कर रखा है
तुम्हारे वादों का 
दिया हुआ 
ब्राउन रंग का मफलर
बांध लेता हूँ 
जब कभी
कान में फुसफुसाकर 
कहती है ठंड
कि, आज बहुत ठंड है
इन दिनों 
गिर रही है बर्फ
दौड़ रही है शीत लहर
जानता हूँ 
तुम्हारी तासीर 
बहुत गरम है
पर 
मेरी ठंडी यादों को 
गर्माहट देना
ओढ़ लेना
मेरा दिया हुआ 
ऊनी आसमानी शाल
पारा पिघलकर
बहने लगेगा......
"ज्योति खरे"
 
