सफ़र से लौटकर
आने की आहटों से चौंक गये
बरगद,नीम,आम
महुओं का
उड़ गया नशा
बड़े बड़े दरख्तों के
फूल गये फेंफडे
हर तरफ
कान में रस घोलता शोर
खुल गये कनखियों से
बंधन के छोर
खरीदकर ले आया मौसम
चुनरी में बांधकर
सुगंध उधार
कलियों की धड़कनों को
देने उपहार
फूलों में आ गयी
गुमशुदा जान
आतुर हैं कलियां
चढ़ने परवान
सूख रहे पनघट पर
ठिठोली की जमघट
सज रहे अनगिनत
रंगों से घूंघट
प्रेम के रोग की
इकलौती दवा
आ गयी इठलाती
बासंती हवा-------
"ज्योति खरे"