गालियां देता मन
देह्शत भरा माहौल
चुप्पियां दरवाजा
बंद करेंगी
खिडकियां देंगी खोल-----
आदमी की
खाल चाहिये
भूत पीटें डिडोरा---
मरी हुई कली का
खून चूसें भौंरा---
कहती चौराहे की
बुढ़िया
मेरे जिस्म का
क्या मोल-------
थर्मामीटर
नापता
शहर का बुखार---
एकलौते लडके का
व्यक्तिगत सुधार---
शामयाने में
तार्किक बातें
सड़कों में बजता
उल्टा ढोल---------
"ज्योति खरे"
( उंगलियां कांपती क्यों हैं-----से )
देह्शत भरा माहौल
चुप्पियां दरवाजा
बंद करेंगी
खिडकियां देंगी खोल-----
आदमी की
खाल चाहिये
भूत पीटें डिडोरा---
मरी हुई कली का
खून चूसें भौंरा---
कहती चौराहे की
बुढ़िया
मेरे जिस्म का
क्या मोल-------
थर्मामीटर
नापता
शहर का बुखार---
एकलौते लडके का
व्यक्तिगत सुधार---
शामयाने में
तार्किक बातें
सड़कों में बजता
उल्टा ढोल---------
"ज्योति खरे"
( उंगलियां कांपती क्यों हैं-----से )