गीत
बांट रहा याचक हांथों को
राहत के ताबीज----
प्यासी रहकर स्वयं चांदनी
बाँध पाँव में घुंघरु नाचे
काटे नहीं कटे दिन जलते
तीखी मिरची,गरम मसाला
हर टहनी पर,पत्ते पर है
नये समय की,नयी सीख अब
"ज्योति खरे"