आरी
काटती है लकड़ी
वसूला
देता है आकर
रन्दा
छीलता है
चिकना करता है
छेनी
तराशती है पत्थरों को-----
यह सब औजार
कारीगरों के हाथों में आकर
दुनियां को
एक नए शिल्प में
ढालने की
ताकत रखते हैं------
लेकिन अब
कारीगरों के हाथ
काट दिये गये हैं------
बदल दिये गये हैं
सृजन के औजार
हथियारों में---------
"ज्योति खरे"
(उंगलियां कांपती क्यों हैं-----से )
काटती है लकड़ी
वसूला
देता है आकर
रन्दा
छीलता है
चिकना करता है
छेनी
तराशती है पत्थरों को-----
यह सब औजार
कारीगरों के हाथों में आकर
दुनियां को
एक नए शिल्प में
ढालने की
ताकत रखते हैं------
लेकिन अब
कारीगरों के हाथ
काट दिये गये हैं------
बदल दिये गये हैं
सृजन के औजार
हथियारों में---------
"ज्योति खरे"
(उंगलियां कांपती क्यों हैं-----से )