फुरसतिया बादल
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बजा बजा कर
ढोल नगाड़े
फुरसतिया बादल आते
बिजली के संग
रास नचाते
बूंद बूंद चुंचुआते--
कंक्रीट के शहर में
ऋतुयें रहन धरी
इठलाती नदियों में
रोवा-रेंट मची
तर्कहीन मौसम अब
तुतलाते हकलाते--
चुल्लू जैसे बांधों में
मछली डूब रही
प्यासे जंगल में पानी
चिड़िया ढूंढ रही
प्यासी ताल-तलैयों को
रात-रात भरमाते--
◆ज्योति खरे