जीवन भर कलम के साथ सफ़र करता रहा कागज के महल में प्यार के शब्द भरता रहा रेगिस्तान में अपनी नाव किस तरफ मोड़े जहरीले वातावरण मैं तिल- तिल मरता रहा . . . . . . "ज्योति खरे "
प्यार भी अजीब है
चाहे जब
दरवाज़ा खटखटाता है
दिल घबराहट मे
दहल जाता है
खोलता हूँ -
डरते -डरते मन के किवाड़
पंछी प्यार का धीरे से
निकल जाता है...........
"ज्योति "