सोमवार, मई 07, 2012

जीवन भर कलम के साथ सफ़र करता रहा 
कागज के महल में  प्यार के शब्द भरता रहा 
रेगिस्तान  में अपनी नाव किस तरफ मोड़े 
जहरीले वातावरण मैं तिल- तिल मरता रहा . . . . . .
                                       "ज्योति खरे "

love

प्यार भी अजीब है 
चाहे जब 
दरवाज़ा खटखटाता  है 
दिल घबराहट मे 
दहल जाता है 
खोलता हूँ -
डरते -डरते मन के किवाड़ 
पंछी प्यार का धीरे से  
निकल जाता है...........
                  "ज्योति "