चुप्पियों की उम्र क्या है
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अपराधियों की दादागिरी
साजिशों का दरबार
वक्त का जालिम करिश्मा
अंधी है सरकार
बेगुनाही का नमूना
ढूंढ कर हम क्या करेंगे
झूठ की भगदड़ मची है
और हांथ में तलवार
किरदारों के बीच खड़ी
सच बोलती हैं सिसकियां
खूब धड़ल्ले से चल रहा
दंगों का व्यापार
बैठ गए हम यह सोचकर
पेटभर भोजन करेंगे
छेदवाली पत्तलों का
दुष्ट सा व्यवहार
इंसानियत मरने लगी है
कीटनाशक गोलियों से
छाप रहा झूठी खबर
बिक हुआ अखबार
चुप्पियों की उम्र क्या है
एक दिन विद्रोह होगा
आग धीमी जल रही
बस! भड़कने का इंतजार
"ज्योति खरे"