पत्थरों का दर्द भी कोई दर्द है
फूंक कर बैठो यहाँ पर गर्द है----
मुखबरी होगी यहीं से बैठकर
अस्मिता की रात में खिल्ली उड़ेगी
अफवाहों की जहरीली हवा से
धुंध दहशत की हर घर पलेगी
पीसकर खा रहे ताज़ी गुठलियाँ
क्या करें थूककर चाटना फर्ज है----
पी रहे दांत निपोरे कच्ची दारु
जो मिली थी रात को हराम में
लाड़ले मुर्गी चबाते नंगे पड़े
हथियारों के जंगली गॊदाम में
कलफ किये कुर्तो में खून लगा है
अखबारों में नाम इनका दर्ज है------
"ज्योति खरे"
फूंक कर बैठो यहाँ पर गर्द है----
मुखबरी होगी यहीं से बैठकर
अस्मिता की रात में खिल्ली उड़ेगी
अफवाहों की जहरीली हवा से
धुंध दहशत की हर घर पलेगी
पीसकर खा रहे ताज़ी गुठलियाँ
क्या करें थूककर चाटना फर्ज है----
पी रहे दांत निपोरे कच्ची दारु
जो मिली थी रात को हराम में
लाड़ले मुर्गी चबाते नंगे पड़े
हथियारों के जंगली गॊदाम में
कलफ किये कुर्तो में खून लगा है
अखबारों में नाम इनका दर्ज है------
"ज्योति खरे"