उम्मीद तो हरी है .........
दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है
रविवार, अगस्त 23, 2020
नदी
सुबह
तुम जब
सिरहाने बैठकर
फेरकर माथे पर उंगलियां
मुझे जगाती हो
मैँ
तुम्हारी तरह
नदी बन जाती हूँ
दिनभर
चमकती,इतराती,लहराती हूं---
"ज्योति खरे"
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