तड़फते,कराहते
वातावरण में
धड़कनों की
महीन आवाजें
पढ़ती हैं
उदास संवेदनाओं
के चेहरों पर
अनगिनत संभावनाऐं
घबड़ाहटें
चुपचाप
देखती हैं
प्लास्टिक की बोंतलों से
टपककती ग्लूकोज की बूंदें
इंजेक्शनों की चुभती सुई के साथ
सिकुड़ते चेहरे
सफेद बिस्तर पर लेटी देह
देखती है
मिलने जुलने वालों के चेहरों को
अपनी पनीली आंखों से
कि,कौन कितना अपना है
अपनों में
अपनों का अहसास
अस्पताल में ही होता है -------
"ज्योति खरे"