बारूद में लिपटी
जीवन की किताब को
पढ़ते समय
गुजरना पड़ता है
पढ़ने की जद्दोजहद से
दहशतजदा हवाओं का
खिड़कियों से सर्राते चले आना
छत के ऊपर किसी
आतातायी के भागते समय
पैरों की आवाजें आना
खामोश दीवारों की परतों का
अचानक उधड़ कर गिर जाना
बच्चों की नींद की तरह
कई-कई सपनों को
चौंककर देखना
ऐसे समय में भी
पढ़ना तो जरूरी है
जीवन की कसैली नदी में
तैरते समय
डूबने की फड़फडाहट में
पकड़ाई आ जाता है
आंसुओं की बूंदों से भरा आंचल
अम्मा ले आती हैं हमेशा
जीवन के डूबते क्षणों म़े
कसैली नदी से निकालकर
पकड़ा देती है
बारुद से लिपटी किताब
अगर नहीं पढ़ोगे किताब
तो दुनियां में लगी आग को
कैसे बुझा पाओगे---
"ज्योति खरे"