उबलता हुआ जीवन
भाप बनकर चिपक जाता है जब
भाप बनकर चिपक जाता है जब
अपने आगोश में
फिर भटक भटक कर
देखकर धरती की सतह पर
संत्रास की लकीरों का जादू
कलह की छाती पर
रंगों का सम्मोहन
दरकते संबंधों में
लोक कलाकारी
दहशत में पनप रहे संस्कार----
इस भारी दबाब में बरसती बारिश
बूंद बन जाती है
क्यों कि बूंद
सहनशील होती
बूंद खामोश होती है
अहसास की खुरदुरी जमीन को
चिकना करती है
बूंद में तनाव नहीं होता-----
अहसास की खुरदुरी जमीन को
चिकना करती है
बूंद में तनाव नहीं होता-----
बूंद
तृप्त कर देती है अतृप्त प्यार
सींच देती है
अपनत्व का बगीचा------
बूंद
तुम्हारे कारण ही
धरती और जीवन में जिन्दा है हरियाली-----
"ज्योति खरे"
चित्र गूगल से साभार