दोस्त के लिए
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तार चाहे पीतल के हों
या हों एल्युमिनियम के
या हों फोन के
दोस्त!
दोस्ती के तार
महीन धागों से बंधे होते हैं
मुझे
प्रेमिका न समझकर
दोस्त की तरह
याद कर लिया करो
जिस दिन ऐसा सोचोगे
कसम से
दो समानांतर पटरियों में
दौड़ती ट्रेन में बैठकर हम
जमीन में उपजे
प्रेम के हरे भरे पेड़ों को
अपने साथ दौड़ते देखेंगे
कभी आओ
रेलवे प्लेटफार्म पर
सीमेंट की बेंच पर
बैठी मिलूंगी
पहले खूब देर तक झगड़ा करेंगे
फिर छूकर देखना मुझे
रोम-रोम
तुम्हारी प्रतीक्षा में
आज भी स्टेशन में
बैठा है --
◆ज्योति खरे