बीनकर लाती है
जंगल से
कुछ सपने
कुछ रिश्ते
कुछ लकड़ियां
टांग देती है
खूटी पर सपने
सहेजकर रखती है आले में
बिखरे रिश्ते
डिभरी की टिमटिमाहट मेँ
टटोलती है स्मृतियां
बीनकर लायी हुई लकड़ियों से
फिर जलाती है
विश्वास का चूल्हा
कि,कोई आयेगा
और कहेगा
अम्मा
तुम्हें लेने आया हूं
घर चलो
बच्चों को लोरियां सुनाने---
"ज्योति खरे"