निकले थे
गमछे में
कुछ जरूरी सामान बांधकर
कि, रास्ते में चलते समय
जब बहुत हताश
और भूख से बेहाल हो जायेंगे
तो किसी
पुराने पेड़ के नीचे बैठकर
भीख में मिली
सूखी रोटियों को
पानी के साथ खायेंगे
पेड़ की छांव की बैठकर
दर्द से टूट रही
हड्डियों को सेकेंगे
सोचा हुआ
कहां हो पाता है पूरा
सच तो यह है कि
घर से निकलने
और लौटने का रास्ता
दो सामानंतर रेखाओं से
होकर जाता है
एक पर पांव होते हैं
और दूसरी पर सिर
हादसों के चके
सिर और पांव को
कुचल देते हैं
धड़
दो रेखाओं के बीच
निर्जीव पड़ा रहता है
घर में तो केवल
गमछे में बंधा
कुछ सामान पहुंचता है---
"ज्योति खरे"