मंगलवार, मई 17, 2022

अभिवादन के इंतजार में

सामने वाली 
बालकनी से
अभी अभी 
उठा कर ले गयी है
पत्थर में लिपटा कागज

शाम ढले
छत पर आकर
अंधेरे में 
खोलकर पढ़ेगी कागज

चांद
उसी समय तुम
उसके छत पर उतरना
फैला देना 
दूधिया उजाला
तभी तो वह
कागज में लिखे 
शब्दों को पढ़ पाएगी
फिर
शब्दों के अर्थों को
लपेटकर चुन्नी में
हंसती हुई
दौड़कर छत से उतर आएगी

मैं
अपनी बालकनी में
उसके 
अभिवादन के इंतजार में
एक पांव पर खड़ा हूँ----

◆ज्योति खरे