इंतजार है
तुम्हारे मोंगरे जैसे
खिले चेहरे को
करीब से देखूं
ईद मुबारक
कह दूं
पर तुम
शीरखोरमा
मीठी सिवैंईयां
बांटने में लगी हो
मालूम है
सबसे बाद में
मेरे घर आओगी
दिनभर की
थकान उतारोगी
बताओगी
किसने कितनी
ईदी दी
तुम
बिंदी नहीं लगाती हो
पर में
इस ईद में
तुम्हारे माथे पर
गुलाब की पंखुड़ी
लगाना चाहता हूं
मुझे नहीं मालूम
तुम इसे
प्रेम भरा
बोसा समझोगी
या गुलाब की सुगंध का
कोमल अहसास
या ईदी
अब जो भी हो
प्रेम को
जिंदा रखना है
अपन दोनों को
"ज्योति खरे"