निकले थे
गमझे में
कुछ जरुरी सामान बांध कर
कि किसी पुराने पेड़ के नीचे
बैठेंगे
और बीनकर लाये हुए कंडों को सुलगाकर
पेड़ की छांव में
गक्क्ड़ भरता बनाकर
भरपेट खायेंगे
हरे और बूढ़े
पेड़ की तलाश में
विकलांग पेड़ों के पास से गुजरते रहे
सोचा हुआ कहां
पूरा हो पाता है
सच तो यह है कि
हमने
घर के भीतर से
निकलने और लौटने का रास्ता
अपनों को ही काट कर बनाया है----
◆ज्योति खरे