तोड़ डालो सारे भ्रम
कि तुम्हारी सुंदरता को
निहारता हूं
नजाकत को पढ़ता हूं
संत्रास हूं--
तराश कर रख ली है सूरत
ह्रदय में------
होंगे वो कोई और
जो रखते होंगे धड़कनों में तुम्हें
बहा आओ किसी नदी में
मिले हुए मुरझाऐ फूलों के संग
अपना रुतबा,घमंड
मैंने कभी नहीं रखा
अपनी धड़कनों में तुम्हें
धड़कनों का क्या
चाहे जब रुक जायेंगी
आत्मिक हूं---
आत्मा में बसा रखा है
जहां भी जाऊंगा संग ले जाऊंगा------
लिखो,लिखो कई बार लिखो
कि मुझसे करती हो नफरत
देती हो बददुआ
नफरतें प्रेम की कोख से ही जन्मती हैं
बांध लो अपने दुपट्टे में
मेरी भी यह दुआ------
जलाकर आ गया हूं
बूढ़े पीपल की छाती पर
एक माटी का दिया
सुना है
रात के तीसरे पहर
दो आत्माओं का मिलन होता है-------
"ज्योति खरे"
चित्र-- गूगल से साभार