ईट भट्टोंँ में
काम करने वाली स्त्रियां
चाहती हैं
कि, उनका भी
अपना घर हो
खेतों पर
भूखे रहकर
अनाज ऊगाने वाली स्त्रियां
चाहती हैं
कि, उनका भी
और उनके बच्चों का
भरा रहे पेट
मजबूर और गरीब स्त्रियां
चाहती हैं
कि, उनकी फटी साड़ी मेँ
न लगे थिगड़ा
सज संवर कर
घूम सकें बाजार हाट
यातनाओं से गुजर रही स्त्रियां
चाहती हैं
कि , कोई
उलझनों की
खोल दे कोई गठान
ताकि उड़ सकें
कामनाओं के आसमान में
बिना किसी भय के
ऐसी स्त्रियां चाहती हैं
देश दुनियां में
केवल सुख भोगती स्त्रियों का
जिक्र न हो
जिक्र हो
उपेक्षा के दौर से गुजर रहीं स्त्रियों का
रोज न सही
महिला दिवस के दिन तो
होना चाहिए---