क्षणिका सम्राट---मिश्रीलाल जायसवाल
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जीवन की तमाम संवेदनाएं समाज से जुड़ी हुई होती हैं,और हम इसी समाज का हिस्सा होते हैं.इसी समाज में जन्मते हैं, अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं, और चले जातें हैं- "अद्रश्य अंधकार" में-******************************
छोड़ जाते हैं,अपने ना होने का दुःख,जिंदा रहती हैं,स्मृतियाँ,व्यक्तित्व,कृतित्व- ऐसे ही समाजवादी विचारधारा के व्यक्तित्व "बाबूजी- मिश्रीलाल जायसवाल" अब हमारे बीच
***सांपों की नगरी में मैं
डंसे जाने का शौकीन
उन्हें खुश करने के लिए बजाता हूँ बीन
डसे जाने के लिए लाईन में लगता हूं
दफ्तरों के चक्कर काटते नहीं थकता हूं
सांपों को अपने गांव बुलाकर
उनका अभिनंदन करता हूं
उनकी बांबीं में जाकर
उनके निशान को पूजता हूं
फिर पांच साल तक
डंसन की जलन में बिसूरता हूं
और अब विष का इतना बढ़ गया है ताप
मैं खुद बन गया हूं
सांप का भी बाप------ ***
बाबूजी जी का जन्म मिर्जापुर उ.प्र. में ११ मई १९१९को हुआ,इलाहावाद विश्वविद्यालय से बी.एस.सी.(स्नातक)की डिग्री प्राप्त की ,इनका भरा पूरा खानदान है.अपनी समस्त सृजनात्मक ऊर्जा अपने पुत्र
मिश्रीलाल जायसवाल के चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं----
(१)-चौराहे की बात --१९८१
मिश्रीलाल जायसवाल जी के संदर्भ में सुप्रसिद्ध व्यंगकार
"हरिशंकर परसाई"जी ने लिखा था--
***श्री मिश्रीलाल जायसवाल एक अरसे से बहुत लघु काव्य व्यंग्योक्तियाँ लिख रहे हैं,कुछ ही पंक्तियों में किसी विषय,घटना या प्रव्रत्ति को लेकर विडंबना को उभारना आसान काम नहीं है.मिश्रीलाल जी ने इस कला को साधा है.ये लघु काव्य खंड काफी चुटीले होते हैं.इनका आयाम विस्तृत है.मिश्रीलाल जी सामाजिक प्रवृत्ति,व्यक्तिगत बिडंबना,धार्मिक पाखंड,राजनैतिक गतिविधि आदि पर समान क्षमता से व्यंग करते हैं.उनकी द्रष्टि आधुनिक और
प्रगतिशील है और वे प्रगतिशील जीवन मूल्यों को स्वीकारते हैं.उनका अनुभव क्षेत्र व्यापक है, इसलिये उनकी रचनाओं में विविधता है. बिडंबना को वे बखूबी उभारते हैं.वे आगे लिखें,खूब लिखें--
*हरिशंकर परसाई*
१९८७
*राष्ट्रिय समस्याओं पर
युद्ध करने में हम
शिवाजी के अनुगामी हो रहे
वे घोड़े पर सो लेते थे
सीधी,सरल,सहज भाषा कम से कम शब्द पर गहरे अर्थ लिये हुए,कोई लाग लपेट नहीं कोई भूमिका नहीं,सीधी,सच्ची,सटीक बात रहती है इनकी क्षणिकाओं में,सामाजिक,राजनीतिक और अव्यवस्थाओं पर गहरा और सार्थक प्रहार इनकी रचनाओं का मूल कथ्य रहा है.यहीं कारण
*गांधी के राम को
वे घोड़े पर सो लेते थे
हम घोड़े बेचकर
सो रहे हैं-----*
सीधी,सरल,सहज भाषा कम से कम शब्द पर गहरे अर्थ लिये हुए,कोई लाग लपेट नहीं कोई भूमिका नहीं,सीधी,सच्ची,सटीक बात रहती है इनकी क्षणिकाओं में,सामाजिक,राजनीतिक और अव्यवस्थाओं पर गहरा और सार्थक प्रहार इनकी रचनाओं का मूल कथ्य रहा है.यहीं कारण
है कि बाबूजी को "क्षणिका सम्राट"कहा जाता है. एक ऐसा प्रतिबद्ध रचनाकार जो बेबाक अपनी बात कहने में सक्षम था.उनकी रचनायें,हास्य,व्यंग के माध्यम से गुदगुदाती है.चुभती भी हैं.यही बाबूजी जी की रचनाओं का सार्थक सच है.
उनकी पुण्यतिथि पर नमन------
*गांधी के राम को
स्थापित करने में
हम पूरी तरह
सफल रहे हैं
प्रशासन के सारे काम
राम भरोसे चल रहे हैं------*
"ज्योति खरे"