फुदक फुदक
आँगन में आकर
सामूहिक चहचहाती
अन्नपूर्णा का भजन सुनाती
दाना चुगती
फुर्र हो जाती---
धूप चटकती तब
तिनके तिनके जोड़ जोड़ कर
घर के कोने में
घोंसला बनाती
जन्मती
नन्ही चहचहाहट
देखकर आईने में
चोंच मारती
थक जाती तो
फुर्र हो जाती-----
समझ गयी जब से तुम
आँगन आँगन
जाल बिछे हैं
हर घर में
हथियार रखे हैं
फुदक फुदक कर
अब नहीं आती
टुकुर मुकुर बस देखा करती
फुर्र हो जाती------
एक निवेदन चिड़िया रानी
लौट आओ अब
घर आँगन
नये सिरे से
खोलो द्वार
चहको और चहकाओ-------
"ज्योति खरे"